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आज प्याज की कीमतों को ले कर मच रही हाय तौबा को ले कर मन में बहुत से सवाल आये. अगर प्याज ३५ रुपये से बड कर ५० में हो गया तो इतना हंगामा क्यों? आलू टमाटर के दाम अगर बड जाते है तो बेजा ही क्या? कार के दामो में बडत को ले कर तो ऐसा कभी न हुआ न ही फ्रिज या ए सी के दामो को ले कर हुआ, चांदी का दाम साल भर में दो गुना हो गया फिर भी नहीं तो फिर सिर्फ सब्जी को ले कर ही क्यों? यदि किसान को कुछ फायदा हुआ तो नुक्सान ही क्या है. एक फसल को उगाने में ४ लोगो के परिवार की ३ से ४ महीने की मजदूरी यदि जोड़ी जाये तो भी पैदावार की लगत से वसूल नहीं होती फिर बीज और खाद के दाम जोड़ना तो बेईमानी ही रहा. किसानो को इसी तरह दबाना ही यदि सरकार की नीयत है तो उनकी आत्महत्याओ पर शोक जाताना सिर्फ दिखावा ही कहा जायेगा. सरकार छठे वेतन आयोग की सिफारिशे मान कर वेतन भोगियो के जीवन स्तर को तो वैश्विक अर्थ व्यवस्था के बराबर ले आई पर किसान अभी भी अपनी आय बदने के श्रोत खोज रहा है और हताश हो रहा है. अत एव सरकार से अनुरोध है की अभी के आयात मूल्यों को आगामी वर्ष के लिए प्याज का समर्थन मूल्य बना कर स्थिर कर दे ताकि इस साल जो मुनाफा जमाखोरों ने कमाया वो अगले साल उसके सही हक दारो को मिले.
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