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जहाजी की जिन्दगी

मेरे मन के बुलबुले
मेरे मन के बुलबुले
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गत पखवाड़े जोश में मरीन में छात्रों के लिए एक लेख पढने को मिला……कितना बढ कर दिखाया गया है जहाज में नौकरी करने के रोमांच को……पर क्या सच में ऐसा है? चलिए आपको सच बता ही देते है …………. जहाजरानी एक फलता फूलता और विश्व का प्राचीनतम उद्योग है. समय के साथ इस में व्यवसायिक पाबन्दी बदती ही जा रही है. जहाज फायदे में चले इस लिए काम करने वाले लोगो की संख्या दिन ब दिन कम की जा रही है काम और नए नियम रोज़ दर रोज़ बढ रहे है. पूरी दुनिया घूम लेने जैसा अब नहीं बचा. पोर्ट पर जहाजो का रुकना अब कम से कम रहता है और जितने समय भी वो रहते है काम अपने चरम पर ही रहता है. तो बहार निकल कर घूमने जैसा मौका कम ही मिल पता है. और मिलता है तो भी ४ से ६ घंटे के लिए. किनारों से मदत कम मिल पाने के कारन आपको बहुत कुछ खुद ही सोकाना पड़ता है. खाना एक बड़ी समस्या हो जाती है यदि आपको एक बुरा खानसामा मिल गया है या फिर आप किसी दूसरे देश के खानसामे के साथ है. और अलग अलग देशो के लोगो की संस्क्रतियो से ताल मेल बैठने से काम निकलते और फसते है.
पर इतना सब होने के बाद भी यदि आपको work satisfaction की तलाश है और असली काम करने का जस्बा है……विपरीत और विसम परिस्थितियों में भी यदि आप अपना १२०% दे सकते है तो जहाज पर आपका स्वागत है. ये वो काम नहीं है जो की A C ऑफिस में बैठ कर किया जा सके…यहाँ पर कोई नियत दिनचर्या भी नहीं है जैसा की हम कहते है U R 24X7 ON! यही है असल जहाज की जिन्दगी ………. सागर की लहरों पर हिचकोले खाती…..तेज़ हवाओ से बाते करती …….. मछलियों सी फिसलती…….अनेक देशो के सभ्यताओ से मिली झूली पंचमेल खिचड़ी से जिन्दगी.

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