Menu
blogid : 4247 postid : 14

हत्यारे भगवान्

मेरे मन के बुलबुले
मेरे मन के बुलबुले
  • 30 Posts
  • 234 Comments

चिकित्सा एक ऐसा व्यवसाय है जो नर को नारायण बना देता है, ऐसा मेरा मानना है पर बीते तीन दिनों उन्नाव शहर में हुई तीन मौतों ने मेरा मतान्तरण कर दिया है. डा बी पी सिंह की हत्या के विरोध में हुई हड़ताल ३ जिंदगियां निगल गयी. चिकित्सक अपने सेवा भाव एवं कर्तव्यों से विमुख हुए, किन्तु बड़ी बात ये है की वो मानवोचित संवेदनाओ और दया भाव से भी विरत रहे. तीन अंतिम कराहे भी उनकी आत्मा को नहीं झकझोर सकी. बात सिर्फ ३ की ही नहीं है दर्द से कितने ही तडपते रहे होंगे जिनकी अनदेखी की गयी. पर तीन मौतें? इसके बाद भी क्या उनको रात को नींद आ गयी? क्या इन २ दिनों का वेतन लेने में स्वाथ्य कर्मियों को शर्म नहीं आएगी? मुख्य चिकित्सा अधिकारी की म्रत्यु का बदला तीन निरीह लोगो से और उनके परिवार से लिया गया……क्या आपको गाजीपुर की याद नहीं आई जहाँ प्रधान की मौत का बदला लेने को ९ लोगो को जिन्दा जला दिया गया था? यदि हाँ तो स्वास्थ्यकर्मी भी गैर इरादतन हत्या के दोषी हैं. सरकार उनको सजा दे या न दे पर समाज उनको ऐसे ही कैसे जाने दे? वो सभ्यता के दोषी हैं मानवीय समाज के दोषी हैं और भ्रष्ट आचरण के दोषी है. उन्हें ये तो बताया ही जाना चाहिये की ये हत्याए आपने ही की है.
नारी तो ममता की मूर्ति होती है फिर इतनी सारी नर्सो ने एक डायरिया पीड़ित बच्ची को कैसे मर जाने दिया? ये चुपचाप स्वीकार करने योग्य नहीं है. कैसा होता जो की उनकी संतान उस बच्ची की जगह अंतिम साँसे ले रही होती? क्या तब भी हड़ताल में वो शामिल होती? अपनी आँखों के सामने अपने बच्चे को मरने देती? नहीं ये लोग भगवान् का दर्जा नहीं पा सकते.खंडित भगवान् की मूर्ति मंदिर में नहीं रह सकती तो इन भगवानो को भी मंदिर से निकाल फेकना चाहिये.अंत में राज कुमार रसिक जी की चार पंक्तियाँ,
मेरे अंतर की पीड़ा तो बार बार चिल्लाएगी, कब तक नहीं सुनोगे बोलो कब तक लाज न आएगी.
आम आदमी की उलझन न तुम समझे न वो जाने, अनायास ही किसी दुखी की आह कोई फल जाएगी.

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh