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नीव की ईंट

मेरे मन के बुलबुले
मेरे मन के बुलबुले
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ये शीर्षक शायद हाई स्कूल या इंटर की हिंदी की किताब में एक पाठ का था. लेखक शायद राम वृछ बेनीपुरी जी…अगर गलत कहा हो तो माफ़ कर दें…..फिर भी आज ये दुबारा जहन में उठा है रामदेव और अन्ना हजारे को ले कर. रामदेव जी के असफल अनशन की तुलना कुछ हद तक १८५७ की क्रांति की शुरुवात से की जा सकती है जब मंगल पांडे में बिगुल फूका था पर क्रांति असफल ही रही थी. कारण तब भी कूटनीतिक थे और आज भी.देश में तब आजाद होने का माद्दा था पर कुशल नेतृत्व और इच्छा शक्ति का आभाव था, आज भी यही हुआ है तब देश अंग्रेजो से मुक्त होते होते रह गया था और आज देश भ्रस्टाचार से. पर तब भी लोगो को एक बात मालूम हो चली थी की अब देश आजाद हो कर रहेगा……
तो मित्रो आज के परिपेछ्य में मै यही कहना चाहता हू की रामदेव जी बधाई के पात्र है…….. आज भले ही अनशन असफल हुआ हो पर उससे दो बाते जरूर हुई है. पहली की आने वाले चुनाव धर्म जाति या छेत्र के बजाये भ्रस्टाचार के मुद्दे पर लड़े जायेंगे और दूसरी की काला धन भारत वापस आएगा……आज नहीं तो कल ; कल नहीं तो ५० साल बाद…..पर आएगा जरूर……और जब भी आएगा तो कंगूर पर कोई भी हो पर तारीख ये जरूर कहेगी की नीव में बाबा रामदेव नाम की ईंट भी है.

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