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ये कहना मेरा नहीं है बल्कि केंद्र सरकार का है…….उन्होंने १.५ लाख रुपये निर्धारित किये हैं उत्तर प्रदेश की स्त्रियों की सुचिता के. मेरा लेख उन मामलो पर बिलकुल भी नहीं है जो की सचमुच पीड़ित हैं. क्यों की ९० प्रतिशत सच्चे मामले कभी प्रकाश में आते ही नहीं हैं. और जो १० प्रतिशत आते है उनमे भी एक बड़ा हिस्सा झूठे बलात्कार का है. झूठे बलात्कार वाली बात इतनी आसानी से आज से ८ महीने पहले मै भी नहीं पचा सकता था…..पर समाज सेवा के भूत ने इससे भी रु ब रु करा दिया. मानवाधिकार के एक संगठन में काम करते हुए २ ऐसे मामलो से सबीका पड़ा. पहला था जिसमे पिता के द्वारा आपत्तिजनक अवस्था में पकडे जाने पर लड़की ने प्रेमी पर ये इल्जाम लगाया और दूसरा जिसमे लड़की की ” ऊपर ऊपर से सब कुछ करो पर वो सब नहीं करना है” चेतावनी को प्रेमी ने नजरअंदाज किया. और भी मामले सुने है जिनमे प्रतिशोध के लिए इसका उपयोग हुआ.
दूसरी बात ये की एक अकेला पुरुष किसी महिला के साथ बिना उसकी रजामंदी के शारीरिक सम्बन्ध बना सके ये थोडा मुश्किल है. ये बात कोलेज के हॉस्टल की देर रात की परिचर्चाओ में सर्व सम्मत थी. और यदि सच में अभी भी सारी नारियां सती सावित्री हैं तो वो ऍम ऍम एस कहाँ से आये जिनकी वजह से हॉस्टल के लड़के बिना किसी चुभन के पेट के बल भी सो लेते थे. कहने का अर्थ ये है की अगर सच्चे मामलो को घरो में ही समाज के डर से दबा दिया जाता है तो इस बात की क्या गारंटी है की बलात्कार के मामलो में आने वाले कड़े कानूनों का दुरूपयोग नहीं होगा? और किसी की इज्ज़त की कीमत रुपयों से लगाना ये कहा की बुद्धिमानी है? २५ हजार रुपये प्राथमिकी लिखने पर तुरंत भुगतान……क्या मतलब है इसका? क्या सरकार बलात्कार जैसे संवेदनशील विषय को पैसे कमाने का जरिया बनाना चाहती है?
यदि कुछ करना ही है तो समाज में ऐसी चेतना लायी जाये की लोग पीडिता को नहीं बल्कि बलात्कारी को हेय नज़रों से देखें. यदि कोई लड़की अपनी मर्ज़ी से मज़े के लिए अपना कौमार्य किसी पार्टी के बाद यो ही लुटा देती है और फिर भी कोई समस्या नहीं आती उसकी शादी में……….या फिर अन्तरंग प्रेम सम्बन्ध के बाद भी किसी अन्य अधिक उपयुक्त वर का चुनाव करना भी गलत नहीं है तो समाज में बलात्कार पीडिता को अंगीकार करने में समस्या ही क्या है? इतने दिनों से प्रकाश में आये बलात्कार के सारे मामलो में पैसे की मदद बहुत सुनी पर किसी बलात्कार पीडिता के किसी युवक द्वारा अपनाये जाने की बात अभी तक खबर नहीं बनी. जरूरत पैसे की नहीं समाज की सोच में परिवर्तन की है. कड़े से कड़े क़ानून बनें ये सभी चाहते हैं पर उनके दुरूपयोग को रोकने की व्यवस्था भी होनी चाहिए. और किसी नारी की इज्ज़त की कीमत लगा कर राजनैतिक रोटियां सेकना एक ऐसा भद्दा मजाक है जिसकी जितनी भत्सना की जाये , कम है.
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