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ऐ राजू ! दे ना……

मेरे मन के बुलबुले
मेरे मन के बुलबुले
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पहले मैंने इस लेख का शीर्षक ‘आदमी औरत और वो’ सोचा था ताकि संबोधन में आसानी रहे पर ये वाक्य दिमाग में ऐसा चिपका हुआ है की मन नहीं माना. हाँ जी साब तो मै बात कर रहा हूँ किन्नरों की. यदि आपने ट्रेन में सफ़र किया हो तो आप लेख के शीर्षक से अवश्य दो चार हुए होंगे. कल्पना कीजिये आप परिवार समेत जा रहे है और कोई किन्नर आपसे ५ या १० में ना मान कर ५० की नोट मांग करे और कहे की ‘देते हो या उठाऊ अभी’ तो आपकी स्थिति वैसी ही होगी जैसे की कोई आपके सर पर पिस्तोल रख कर पैसे मांग रहा हो. बटुआ निकालने की गलती करने वाले अक्सर बड़ी रकम से हाथ धो बैठते हैं. इसी सीन से बचने के लिए आज तक हम सपत्नीक कभी ट्रेन से कहीं नहीं गए.
दो और अवसरों पर आपका सामना किन्नरों से होता है…….एक तो शादी के समय और दूसरा बच्चा होने पर. शादी के समय तो ये सिर्फ वधु के चरित्र पर दाग लगाने आते है. नहीं बूझ पाए? अरे भाई वधु बेचारी पूरा दिन पूजा से ले कर पार्लर में व्यस्त फिर १ मन का लांचा पहन कर परेड और ३ घंटे स्टेज पर बैठना …..फिर फेरे होने तक रत जगा और अगले दिन फिर पूजा पाठ. सोने को मिलते हैं फेरे होने के बाद १ से २ घंटे. अब अगर उसमे भी किन्नरों का नाटक नींद खराब कर गया तो ३६ घंटे जागने के बाद प्रथम रात्रि के मधुर मिलन के समय वर वधु दोनों ही सोना ज्यादा पसंद करंगे . पर अगले दिन साफ़ चादर की सफाई में आप गंगाजली भी हाथ में ले लो ….तो भी ना मानेगा कोई की रात को सिर्फ सोये थे. अब ये चारित्रिक दाग लगाने की कोशिश नहीं तो और क्या है? तिस पर भी ख़ुफ़िया जानकारी इतनी अच्छी की लेन देन तक पता रहता है. गेस्ट हॉउस इतने का, दहेज़ इतना और हमें बस ५ हजार? डिमांड ५१ से शुरू होती है और ११ पर पटती है. इतना देने के बाद भी लगता है की जान बची तो लाखों पाए .
दूसरा अवसर है की जब आप पिता बनते हैं. तब भी धन्य हैं इनका खुफिया विभाग की आपके रिश्तेदारों को खबर हो या ना हो इनको जरूर हो जाती है. पहले तो बच्चा दिखाओ फिर ये बधाई गायेंगे और फिर लड़का हुआ तो पूरे मोहल्ले के सामने पैसे को ले कर तमाशा .
खैर ये तो किन्नरों के जीवन का वो पहलू है जो हम सभी को पता है. पर एक दूसरा पहलू भी है…..मजबूरी का…..आगे नाथ ना पीछे पगहा. माँ बाप भाई बहन दूरी बना लेते हैं और नामलेवा कोई होगा उसकी आशा नहीं .जो भी वो लोग करते हैं वो शौक से नहीं बल्कि मजबूरी से करते है क्यों की समाज ने और कुछ कर सकने का अधिकार उनको दिया ही नहीं.यदि समाज को उनके कृत्यों से इतनी ही परेशानी है तो समाज ही बताये की और क्या काम कर सकते है किन्नर? किस स्कूल में जा सकते हैं पढने? कहाँ नौकरी करके वो समाज में ससम्मान रह सकते है?अभी तक मैंने इसके अलावा सिर्फ उन्हें वेश्याव्रत्ति करते देखा है या वसूली करते सुना है . क्या और कुछ भी नहीं? शायद मध्य प्रदेश में एक अच्छी शुरुवात हुई थी की महिला हॉस्टल का चौकीदार किन्नरों को बनाया था……पर अभी भी ये एक बड़ी आबादी है जो की अभिशप्त जीवन बिता रही है जिसमे की उसका कोई दोष नहीं. क्या आपने कभी किसी किन्नर की शव यात्रा देखी है? मैंने भी नहीं देखी बस सुनी है की आधी रात को शव को घसीटते , चप्पल जूतों से पिटते हुए निकालते है की दोबारा ऐसी योनी में मत आना……..

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