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मंदिर धनवान जनता निर्धन……..ये जागरण की फोरम नवीनतम मुद्दा है……क्यों भाई? क्या आपकी निगाह दान पर भी है…..उसमे भी राम देव श्री श्री रविशंकर और आशा राम जी को भी घसीटा…..रामदेव के लिए पूछ भी लगाईं है की वो पैसा व्यापार का है…..तो साहब प्रश्न ये है की जागरण के मालिकाना हक रखने वालों के पास भी इतना पैसा तो होगा ही की हज़ार गरीबों का भला हो सके…….टाटा और अम्बानी के पास भी, तो उनकी बात क्यों न करो……मंदिर या साधू संतों ने जबरन वसूली या भ्रष्टाचार से पैसा नहीं एकत्र किया……..तो फिर ये बहस किस लिए? तिस पर भी तुर्रा ये की सार्थक विमर्श है ये……..महोदय कृपया स्पस्ट करें की अर्थ क्या है……..सार्थक या निरर्थक ये बाद में सोचेंगे
पैसा बांटने की बात आती है तो .क्या सरकार सिर्फ हिन्दुओं को उनका धन बाट सकती है?….तब ये मुद्दा संवेदनशील हो जायेगा……..और फिर आपको मसाला मिल जायेगा अखबार बेचने के लिए…… क्यों की देश के हिन्दुओं ने देश की सरकार को दान नहीं दिया तो सरकार कौन होती है उस पर फैसला देने वाली या उसका उपयोग करनेवाली……यदि ऐसा कुछ करना है तो भगवान् पद्मनाभ के सारे भक्तों से पुछा जाये की उनके दान किये धन का क्या करना है. अगर ये संभव नहीं तो जिनकी सुपुर्दगी में ये पैसा है वो ही इस निर्णय को लेने के सही अधिकारी हैं
कभी ये प्रश्न क्यों नहीं उठा की वेटिकन के पास कितना पैसा है ? या जब सोमालिया में हजारों मुस्लिम भुखमरी से मर रहे थे तो अरब के शेख की ठोस चाँदी की कार मक्का से मदीना के बीच घूम रही थी. इस पर भी प्रश्न होने चाहिए…..
दैवी आपदा के समय उस पैसे का इस्तमाल कैसे हो ये फैसला उस ट्रस्ट के विवेक पर छोड़ा जा सकता है पर तब जिम्मेदारी सभी धार्मिक स्थलों की होगी सिर्फ मंदिरों की नहीं ……..और यहाँ तो समस्या और भी जटिल है……मदिर में मिले धन का ज्यादातर हिस्सा एक ही परिवार का है……अब जब की धन और पुरातन मूर्तियाँ दुनिया और सफेदपोश मगरों की नज़र में आ चुकी हैं तो कृपा करके धन की सुरक्षा और सरकारी नुमाइन्दों से मंदिर की संपत्ति कैसे बचाई जाये इस पर बहस आहूत करें. इस प्रकार की बहस जो समाज के एक वर्ग की भावनाओं को भड़काती हो जागरण जैसे मंच पर शोभा नहीं देती.
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