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परदेस से पिया को पाती…..

मेरे मन के बुलबुले
मेरे मन के बुलबुले
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इन ऊचे ढलानों से हवा जो उतरती है,
कभी कभी रुक कर मुझसे बातें भी करती है.

कहती है हाल तुम्हारा ; गीत नए सुनाती है;
हौले से मेरे कानो में ‘ मिस यू डार्लिंग’ कह जाती है.

गहरी काली चूनर ओढ़े ; सांझ घनेरी आती है;
आँखों में सपने भरती है; थपकी दे के सुलाती है.

सुबह सुबह सूरज की लाली नए अरमान जगाती है;
झुलसाती गर्मी अपने संघर्षों की याद दिलाती है.

इतना अपनापन है सखी यहाँ ; फिर भी आँखें भर आती हैं,
सुख चाहे जितना भी हो पर याद तुम्हारी आती है.

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