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उपरोक्त शीर्षक चौदह फरवरी सन सत्तानबे के जागरण में छपे अरुण शौरी जी के संपादकी लेख से लिया गया है. आज फिर से इस लेख की याद आ गयी……….घटना छोटी सी है , शहर के प्रतिष्ठित वकीलों में से एक शुक्ल जी के एक मात्र पुत्र का सड़क दुर्घटना में निधन. अभी दो वर्ष पहले विवाह हुआ था. शुक्ल जी नगर में बड़े धार्मिक व्यक्ति माने जाते हैं ,भव्य मंदिर निर्माण और वो भी एक बड़ी फैक्ट्री से मंदिर की जमीन छुड़ा कर जिसके लिए की उन्हें कई लोगो को लाम बंद करना पड़ा. दान इत्यादि भी अच्छा करते हैं. पर प्रश्न ये है उन पे उनकी पत्नी और सबसे ज्यादा उनकी पुत्र वधु पर इस आकस्मिक वज्रपात का कारण क्या था? जैसा की वो खुद भी पूछ लेते हैं सांत्वना देने आये हुए लोगो से; की भगवान् ने मेरे साथ ऐसा क्यों किया? मेरा क्या दोष था?
ये एक मात्र घटना हो ऐसा भी नहीं है , मेरे घर से लगे हुए घर में सात वर्ष पूर्व जे ई मिश्र जी का परिवार रहता था……मिश्र जी , उनकी पत्नी, पुत्र ;पुत्र वधु और एक पोता दो वर्ष का. रात में कुछ लोगो ने सभी की बहुत ही वीभत्स तरीके से हत्या कर दी. मोहल्ले के श्रीवास्तव जी पेशकार. पत्नी प्राइमरी शिक्षिका , तीन बेटियां. हर साल माता का जगराता करते थे. खुश हाल परिवार. पहले आंटी कैंसर की वजह से चल बसीं फिर किसी प्रकार एक लड़की के हाथ पीले करके श्रीवास्तव जी लिवर ख़राब करके उनके पीछे हो लिए. सारी जमा पूँजी बीमारी में लग गयी और बाकि बची दो लड़कियां रिश्तेदारों की दया पर.तब आप बरबस ही कह उठते हो की भगवान् आप ने ये क्या कर दिया? ” नाम चतुरानन पै चुकत चले गए.” अरुण जी ने भी एक ऐसी ही घटना का उल्लेख किया है; जिसे की संछेप में मै यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ.
स्पेस्टिक्स सोसाइटी स्कूल दिल्ली, बाबा आमटे का ईश्वर पर व्याख्यान और आलोक पूछ पड़ा ” लेकिन आपके ईश्वर ने मेरे साथ ऐसा क्यों किया?” आलोक, चल फिर नहीं सकता, हाथ – पैरों के सहारे घिसटना पड़ता था उसे; उसकी बोली समझना मुश्किल था. और भी सैकड़ों दिक्कतें. पर हौसला मजबूत. बाबा आमटे ने एक प्रसंग के द्वारा उत्तर दिया……..गांधी जी के एक सहयोगी की पुत्री विकलांग मंदबुद्धि थी. एक रोज़ क्वाटर में पहुचने पर उसने बेटी को अत्यंत कस्ट में देख कर उसे उठाया और ले जा कर गांधी जी की गोद में लगभग पटक ही दिया, ” आपके भगवान् ने ऐसा क्यों किया” वह चीखा. क्षण भर बाद गांधी जी ने शांत भाव से धीरे से कहा” भगवान् ने यह तुम्हारे ह्रदय में दयालुता पैदा करने के लिए किया है.”
सभी लोग प्रभावित हुए, पर आलोक नहीं.उसने कहा ” लेकिन अगर आपका भगवान् मेरे माता पिता को दयालु बनाना चाहता था तो भी उसने मेरे ही साथ ऐसा क्यों किया?” .इस प्रश्न का उत्तर बाबा आमटे को मिला या नहीं मै नहीं जानता……………अरुण जी लिखते है की बाद में वो जब भी बाबा जी से मिले उन्होंने कहा की वो अभी भी उत्तर खोज रहे हैं. प्रश्न अभी भी अनुत्तरित है मेरे लिए. ऐसा क्यों करता है वो ईश्वर?……….. क्या धरती के रंगमंच के नाटकों में अधिक रोचकता डालने के लिए जिसका की वो आनंद उठा सके? या की बाकि सभी में इस प्रकार की घटना से डर उत्पन्न करने के लिए ताकि हम सभी उसकी पूजा करें…………” भय बिनु होय ना प्रीती”……….पर इस अनंत ब्रम्हांड की अनंत आकाश गंगाओ के अनगिन सूर्यों में से एक के अदना से गृह के धूल से भी तुच्छ एक मानव से भक्ति प्राप्त करने की ऐसी लालसा हो सकती है क्या उस परम सत्ता में? क्या वो इतना स्वार्थी है ? कैसा पिता है वो जो अपने बच्चो को दुःख दे कर आनंदित होता है? सभी धर्म गोलमोल बातें करते हैं. मुझे इस बात का उत्तर नहीं मिल रहा अतः आप सभी से ब्लॉग के माध्यम से पूछ रहा हूँ…… शायद यही कुछ ऐसा मिल जाये जिससे मन को शांति मिले.
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